Monday, 12 November 2007

म्यूचुअल फंड: पढ़-समझकर लगाएं पैसा

नई दिल्ली : बाजार की तेजी को देखते हुए इन दिनों कई म्यूचुअल फंड अपने नए ऑफर के साथ बाजार में उतर रहे हैं। इसी तरह कई फंड पहले से चल रही स्कीमों को नए कलेवर के साथ पेश कर रहे हैं। रिटेल इनवेस्टर का एनएफओ की तरफ झुकाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि गाढ़ी कमाई इनवेस्ट करने से पहले इनवेस्टर कुछ बातों का ध्यान रखें। म्यूचुअल फंड में इनवेस्ट करना है तो ऑफर डॉक्युमेंट (ओडी) पढ़े बिना अंतिम फैसला लेना ठीक नहीं रहेगा। ओडी ही वह दस्तावेज है, जिसे पढ़कर स्कीम के बारे में सही जानकारी मिल सकती है और उसकी परफॉरमेंस का भी अंदाज लगाया जा सकता है। अब सवाल उठता है कि सौ-सवा सौ पन्नों के ओडी में से बतौर इनवेस्टर्स आपके काम की कौन सी बातें हैं?

ऑफर डॉक्युमेंट क्या है?

प्रत्येक फंड हाउस जब कोई नई स्कीम लॉन्च करता है, तो इससे जुड़े तमाम नियमों, शर्त और दूसरी बातों की जानकारी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) को देता है। यह जानकारी जिस दस्तावेज के जरिए सेबी को दी जाती है, उसे स्कीम का ऑफर डॉक्युमेंट कहते हैं। इसमें इनवेस्टमेंट का मकसद, रिस्क फैक्टर, लोड व दूसरे खर्च आदि से जुड़ी तमाम जानकारियां दी गई होती हैं।

नाम पर मत जाइए

स्कीम का नाम काफी लुभावना हो सकता है। लेकिन आप नाम पर न जाते हुए इनवेस्टमेंट के मकसद पर जाइए और यह देखिए कि फंड हाउस ने पूंजी को इनवेस्ट करने की योजना बनाई है। कई स्कीम के नाम में 'मैक्समाइजर', 'एनहैंसर' जैसे शब्द लगाकर उन्हें आकर्षक बनाया जाता है। आमतौर पर निवेशक इन शब्दों से यह अर्थ लगाते हैं कि यह स्कीम उनकी इनवेस्टमेंट की गई रकम को बढ़ाने वाली है। पर इस बारे में ज्यादा ठोस संकेत इनवेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव्स के बारे में जानकर ही मिल सकते हैं, नाम से नहीं।

ऐसेट अलोकेशन

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि फंड हाउस ऐसेट अलोकेशन किस तरह करने जा रहा है। अगर किसी स्कीम के तहत 65 फीसदी से ज्यादा रकम इक्विटी में लगाई जाने वाली है तो ऐसी स्कीम को इक्विटी स्कीम कहते हैं। अगर कंपनी इक्विटी व डेट में बराबर-बराबर रकम इनवेस्ट करने जा रही है, तो ऐसी स्कीम बैलेंस्ड स्कीम के रूप में जानी जाती है। बैलेंस्ड स्कीम की तुलना में इक्विटी स्कीम में ज्यादा जोखिम होता है।

स्कीम का कैरेक्टर

यह जान लीजिए कि स्कीम किस तरह की है - ओपन एंडेड विद लॉक इन। ओपन एंडेड स्कीम में कभी भी एंट्री ली जा सकती है और कभी भी उससे बाहर निकला जा सकता है। जबकि क्लोज एंडेड स्कीम में सब्सक्रिप्शन एक ही बार लिया जा सकता है और रीडेंपशन भी न्यूनतम तय समय सीमा के अंतराल पर ही हो सकता है। इस तरह क्लोज एंडेड स्कीम की लिक्विडिटी कम हो जाती है। कुछ ओपन एंडेड स्कीम ऐसी होती है, जिनमें एक लॉक इन पीरियड होता है। यानी इस पीरियड के भीतर रीडेंपशन नहीं हो सकता। चूंकि लिक्विडिटी, यानी रीडेंपशन की आजादी, किसी भी इनवेस्टर के लिए अहमियत रखती है, लिहाजा इनवेस्टमेंट से पहले इस बारे में निश्चिंत हो जाना चाहिए।

एक्सपेंस

किसी म्यूचुअल फंड स्कीम में इनवेस्टमेंट की लागत क्या आने वाली है, इसका सही-सही पता होना जरूरी है, क्योंकि इसका सीधा असर रिटर्न पर पड़ता है। म्यूचुअल फंड ऑपरेट करने में अडवाइजरी, कस्टोडियल, ऑडिट ट्रांसफर एजेंट व ट्रस्टी फीस और एजेंट कमिशन आदि कई मद में खर्च करने पड़ते हैं, ऑफर डॉक्युमेंट में इन मदों में किए जाने वाले खर्च के बारे में जानकारी दी गई होती है। इसके अलावा, इसमें यह भी बताया गया होता है कि स्कीम में पैसा लगाने पर इनवेस्टर्स को कौन-कौन से चार्जेज देने होंगे। मसलन- एंट्री लोड, एग्जिट लोड, स्विचिंग चाजेर्ज, रेकरिंग एक्सपेंस वगैरह। आपके लिए वैसी स्कीम फायदेमंद रहेगी, जिस पर खर्चे कम आते हों। खर्चे कम होंगे तो फंड हाउस के पास इनवेस्टमेंट के लिए रकम ज्यादा होगी। इनवेस्टमेंट के लिए रकम ज्यादा होगी, तो रिटर्न भी ज्यादा मिलने की उम्मीद बनेगी।

टैक्स का सवाल

अलग-अलग स्कीम पर टैक्स से जुड़ी अलग-अलग रियायतें दी जाती हैं। आमतौर पर इक्विटी आधारित स्कीमों में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स से छूट के रूप में आपको बड़ी रियायत मिलती है। बैलेंस्ड व डेट आदि दूसरी स्कीमों में कैपिटल गेन पर अलग-अलग दर से टैक्स लगाया जाता है। इस तरह इन स्कीमों में मिलने साली टैक्स संबंधी रियायत कम हो जाती है। आप अपनी टैक्स संबंधी ठोस प्लानिंग के लिए यह अच्छी तरह जान लें कि आप जिस स्कीम में इनवेस्टमेंट करने जा रहे हैं, उस स्कीम में टैक्स संबंधी क्या और कितनी रियायत मिलने वाली है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अगर टैक्स के रूप में आपकी अच्छी खासी रकम चली गई तो स्कीम पर मिलने वाला रिटर्न उसी रेश्यो में कम हो जाता है। लिहाजा ऑफर डॉक्युमेंट में 'टैक्स इन्फर्मेशन' वाला सेक्शन ध्यान से पढ़ना चाहिए।

ट्रैक रेकॉर्ड

ऑफर डॉक्युमेंट में फंड हाउस शुरू से ही अपनी परफॉरमेंस के बारे में पूरी जानकारी देता है। इसमें यह अंतराल पर दिए गए रिटर्न, नेट ऐसेट वैल्यू (एनएवी) आदि के बारे में जानकारी दी गई होती है। आपको शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म, दोनों ही तरह की पिछली स्कीम की परफॉरमेंस पर नजर डालनी चाहिए। इन आंकड़ों पर नजर डालकर आपको फंड का ट्रैक रेकॉर्ड पता चल जाता है।

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