Tuesday 13 November, 2007

शेयर बाजार दबाव में बने रहेंगे

नई दिल्ली: अमेरिका के ऋण बाजार की स्थिति को लेकर उत्पन्न गहरी चिंता ने रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड बना रहे देश के शेयर बाजारों में बीते सप्ताह लगाम लगा दी और मुनाफावसूली के जोर के बीच आगामी हफ्ते भी इस सिलसिले के बने रहने की आशंका है।

विश्लेषकों का मानना है कि फिलहाल जो वैश्विक बाजारों की स्थिति है, उसे देखते हुए और तकनीकी सुधार की गुंजाइश है।

दिल्ली शेयर बाजार के पूर्व अध्यक्ष और ग्लोब कैपिटल मार्केट्स के प्रमुख अशोक कुमार अग्रवाल की राय में आगामी सप्ताह अमेरिका समेत अन्य वैश्विक बाजारों की स्थिति को देखते हुए मुनाफावसूली का जोर रहने की सम्भावना है। अग्रवाल का कहना है कि बाजार में तकनीकी सुधार की अधिक उम्मीद नजर आ रही है।

उधर सभी उम्मीदों के विपरीत बीते सप्ताह देश के शेयर बाजारों पर अमेरिका के ऋण बाजार की स्थिति भारी पड़ी। वैश्विक शेयर बाजारों की तरह यहां भी शेयर बाजार टूट गए।

मुम्बई शेयर बाजार (बीएसई) में पांचों कारोबारी दिवसों में गिरावट रही। दीवाली के शुभ मुहूर्त कारोबार और हिन्दू वर्ष 2064 की शुरुआत पर पिछले सात वर्षों के दौरान पहली बार सेंसेक्स नीचे आया।

बीते सप्ताह शेयर बाजारों में तेज उतार-चढ़ाव बना रहा। सप्ताह के शुरू में 20 हजार अंक से ऊपर निकला बीएसई का सेंसेक्स सप्ताहांत 1,068.63 अंक अर्थात 5.35 प्रतिशत की जोरदार गिरावट से 18,907.60 अंक रह गया। सप्ताह के दौरान यह नीचे में 18,737.22 तथा ऊपर में 20,009.35 अंक तक चढ़ा।

विश्लेषकों का कहना है कि अल्पकालिक लिहाज से तकनीकी सुधार की अधिक गुंजाइश है। वैश्विक स्थिति को देखते हुए विदेशी संस्थानों की बिकवाली से शेयर बाजारों पर दबाव बढ़ा है।

नेशनल स्टाक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 269.15 अंक अर्थात 4.54 प्रतिशत की गिरावट से 5,663.25 अंक रह गया।

विश्लेषकों का कहना है कि मुद्रास्फीति के वर्तमान में पांच वर्ष के न्यूनतम स्तर और चालू वित्त वर्ष के दौरान नौ प्रतिशत की विकास दर को देखते हुए आवश्यक तकनीकी सुधार के बाद बाजारों के फिर से उठने की उम्मीद बनी हुई है।

सत्ताईस अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में मुद्रास्फीति की दर पांच वर्ष में पहली बार तीन प्रतिशत से नीचे 2.97 प्रतिशत रह गई। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की रिकॉर्ड कीमतों को देखते हुए घरेलू बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढोतरी की स्थिति में मुद्रास्फीति पर फिर से दबाव पड़ सकता है।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पार्टिसिपेटरी नोट्स पर प्रतिबंध लगाए जाने के फैसले के बाद से विदेशी संस्थान बाजार में बिकवाल नजर आ रहे हैं। सत्रह अक्टूबर को आए इस प्रस्ताव के बाद से विदेशी संस्थानों ने करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपए का निवेश निकाल लिया है।

गत सप्ताह पांचों कारोबारी दिवसों में बिकवाली का जोर रहने से बाजार निरंतर टूटते रहे। सोमवार को 385.45 अंक टूट सेंसेक्स दीवाली के मूहुर्त कारोबार में भी इससे ऊबर नहीं पाया। मुहूर्त कारोबार में सेंसेक्स में 151.33 अंक और निफ्टी में 35.50 अंक का नुकसान हुआ।

अमेरिकी ऋण बाजार की स्थिति को देखते हुए बीते सप्ताह बैंकिग क्षेत्र के शेयर पर बिकवाली का दबाव दिखा। उधर रुपए की मजबूती ने सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों पर असर दिखाया। अमेरिकी की अर्थव्यवस्था की मंद गति को देखते हुए भी देश से सॉफ्टवेयर का निर्यात करने वाली सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों के शेयर दबाव में है क्योंकि इनकी आय का एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी बाजार से आता है।

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