नई दिल्ली : विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर के करीब पहुंचने की वजह से विकासशील इंडियन इकॉनमी को खतरा हो सकता है। इसके साथ ही रुपये की कीमत में बढ़ोतरी और ग्लोबल मंदी भी इकॉनमी की सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम के सर्वे में 81 फीसदी सीईओ का मानना है कि विश्व बाजार में सरपट दौड़ते तेल मूल्य को देखते हुए सरकार के समक्ष अब सीमित विकल्प ही बचे हैं और उसे इसका कुछ बोझ उपभोक्ताओं पर डालना पड़ सकता है। सर्वे के मुताबिक, स्थिति काफी पेचीदा हो गई है और अगर इसका निदान ठीक ढंग से नहीं निकाला गया तो इकॉनमी के लिए आनेवाले दिनों में कठिन परिस्थितियां बन सकती हैं।
सर्वे में 180 कंपनियों के प्रमुखों और सीईओ ने अपनी राय व्यक्त की। उनका कहना है कि इस स्थिति से अगर ठीक से नहीं निपटा गया तो 9 फीसदी की आर्थिक विकास दर को बरकरार रखना काफी मुश्किल हो जाएगा। पिछले तीन महीनों के दौरान कच्चे तेल की कीमतें 77 डॉलर प्रति बैरल से बढ़ती हुई 97 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है। इसके पीछे भारत और चीन से बढ़ती पेट्रोलियम उत्पादों की मांग, अमेरिका में पेट्रोलियम के भंडार में कमी को मुख्य वजह बताया जा रहा है। वादा तेल बाजार में सटोरियों की गतिविधियां बढ़ने से स्थिति और बिगड़ गई। करीब-करीब सभी व्यापारी अब कच्चे तेल के दाम को लेकर सट्टा लगाने लगे हैं।
सर्वे में भाग लेने वाले ज्यादातर उद्यमी सरकार की तरफ से तेल कंपनियों के नुकसान की भरपाई के लिए और बॉन्ड जारी किए जाने के खिलाफ थे। एसोचैम अध्यक्ष वेणुगोपाल एन. धूत के मुताबिक बॉन्ड का आखिरकार सरकार की वित्तीय स्थिति पर खराब असर होगा। तेल की देनदारी का बोझ बाद में करदाताओं के कंधों पर ही पड़ेगा।
No comments:
Post a Comment