Monday, 10 March 2008

भारत व चीन की तेजी निगल रही है महंगाई

नई दिल्ली। विश्व की उभरती आर्थिक शक्तियों भारत और चीन के लिए बढ़ती महंगाई खासा सिरदर्द बनती जा रही है।

देश में 23 फरवरी को समाप्त हुए सप्ताह में महंगाई मापने के पैमाने की इकाई मुद्रास्फीति की दर दस महीनों में सर्वाधिक 5.02 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह भारतीय रिजर्व बैंक की लक्ष्मण रेखा से अधिक है। इसी तरह से चीन में जनवरी में 11 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए मुद्रास्फीति की दर 7.1 फीसदी को छू गई।


पिछले सप्ताह चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने नेशनल कांग्रेस की सालाना रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि देश में पिछले वर्ष मुद्रास्फीति की दर 4.8 प्रतिशत रही है जो सरकार की लक्ष्य तीन प्रतिशत से काफी अधिक है। चीन में मुद्रास्फीति की दर बढ़ने के मुख्य कारण खाद्य वस्तुओं और आवास का महंगा होना रहा है।

वेन ने कहा कि बढ़ती महंगाई से चीन के सामाजिक ताने-बाने को खतरा पैदा हो गया है। बढ़ती महंगाई और मुद्रास्फीति का दबाव लोगों के लिए चिंता का विषय बन रहा है।



रिजर्व बैंक के गवर्नर वाय.वी. रेड्डी ने सप्ताहांत में पेरिस में कहा कि कीमतों को स्थिर रखना पहली प्राथमिकता है क्योंकि इससे भारी संख्या में गरीब लोग प्रभावित होते हैं। उधर चीन में भी महंगाई ने उसकी दो अंकों की विकास दर को निगलना शुरू कर दिया है।

वर्ष 2006-07 में भारत की आर्थिक विकास दर 9.4 प्रतिशत रही थी जबकि 31 मार्च को समाप्त हो रहे चालू वित्त वर्ष में इसके नौ प्रतिशत रहने का अनुमान है। एक अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि चीन की आर्थिक विकास दर पांच वर्ष तक दो अंकों में रहने बाद वर्ष 2008 में नौ प्रतिशत रह सकती है।

स्टैंडर्ड एंड पूअर्सने एक रिपोर्टवर्ष 2008 में चीनमें कहा है कि अत्यधिक सर्दी और घरेलू नीतियों से चीन की आर्थिक विकास दर प्रभावित होगी। हालांकि देश का सकल घरेलू उत्पाद 9.3 प्रतिशत की दर बढ़ सकता है। वास्तव में जनवरी और फरवरी में हुई बर्फबारी ने घरेलू परिवहन व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया जिसके कारण देश के कई हिस्सो में आर्थिक गतिविधियां थम-सी गई हैं।

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