अब भारतीय अंगूरों की मिठास यूरोप तक जा पहुंची है। ऐसा पहली बार हुआ है कि कारफोर और टेस्को जैसी कम्पनियां यहां से कई टन अंगूर अपने खुदरा स्टोर में बेचने के लिए ले जा रही हैं।
नासिक के अंगूर बहुत जल्द दुनिया की बड़ी-बड़ी खुदरा दुकानों में सजने की तैयारी कर रहे हैं। इस साल पहली बार कारफोर और टेस्को जैसी बड़ी दिग्गज खुदरा कम्पनियां सीधे भारतीय कम्पनियों से अंगूर खरीद रही हैं।
फ्रांस की कारफोर करीब 150 टन थॉमसन अंगूर ले जा रही है, जबकि ब्रिटेन की टेस्को करीब 250 टन अंगूर खरीद रही है। यह खरीद इसलिए भी ज्यादा महत्व की हो जाती है क्योंकि यूरोप के खुदरा व्यवसायियों के गुणवत्ता मानक काफी कड़े होते हैं। सबसे पहले यह देखा जाता है कि फल में कीटनाशक नहीं के बराबर हो, पूर्तिकर्ता अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभा रहा हो, जैसे उनके खेतों में बाल मजदूरी न कराई जाती हो और ऑडिट में कम से कम दो साल का वक्त लगता हो।
कीमतों के मामले भी यूरोप बाकी देशों से कहीं बेहतर है। यूरोप में अंगूर को ढाई यूरो प्रति किलो के भाव से बेचा जाता है जबकि बाकी देशों में ठीक इसके पांचवे हिस्से के भाव पर बेचा जाता है।
इस साल के दौरान केवर 400 टन अंगूर खरीदा गया है, लेकिन आने वाले छः सालों में यह 1200 टन के करीब पहुंचने के आसार हैं। यानी अब अंगूर की खेती करने वालों के लिए अंगूर मीठे हैं।
नासिक के अंगूर बहुत जल्द दुनिया की बड़ी-बड़ी खुदरा दुकानों में सजने की तैयारी कर रहे हैं। इस साल पहली बार कारफोर और टेस्को जैसी बड़ी दिग्गज खुदरा कम्पनियां सीधे भारतीय कम्पनियों से अंगूर खरीद रही हैं।
फ्रांस की कारफोर करीब 150 टन थॉमसन अंगूर ले जा रही है, जबकि ब्रिटेन की टेस्को करीब 250 टन अंगूर खरीद रही है। यह खरीद इसलिए भी ज्यादा महत्व की हो जाती है क्योंकि यूरोप के खुदरा व्यवसायियों के गुणवत्ता मानक काफी कड़े होते हैं। सबसे पहले यह देखा जाता है कि फल में कीटनाशक नहीं के बराबर हो, पूर्तिकर्ता अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभा रहा हो, जैसे उनके खेतों में बाल मजदूरी न कराई जाती हो और ऑडिट में कम से कम दो साल का वक्त लगता हो।
कीमतों के मामले भी यूरोप बाकी देशों से कहीं बेहतर है। यूरोप में अंगूर को ढाई यूरो प्रति किलो के भाव से बेचा जाता है जबकि बाकी देशों में ठीक इसके पांचवे हिस्से के भाव पर बेचा जाता है।
इस साल के दौरान केवर 400 टन अंगूर खरीदा गया है, लेकिन आने वाले छः सालों में यह 1200 टन के करीब पहुंचने के आसार हैं। यानी अब अंगूर की खेती करने वालों के लिए अंगूर मीठे हैं।
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