नई दिल्ली। सरकार के तमाम उपायों के बावजूद सकल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर आठ मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में 0.81 प्रतिशत की तीव्र बढ़ोतरी से छह प्रतिशत के निकट 5.92 प्रतिशत पर पहुंच गई, इससे अर्थव्यवस्था की विकास गति के धीमा पड़ने के संकेतों के बावजूद ब्याज दरों में नर्मी की सम्भावनाएं फिलहाल नहीं दिखाई देती है।
विश्लेषक मुद्रास्फीति की दर में इस तीव्र बढ़ोतरी को उम्मीदों से अधिक मान रहे हैं और उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि के धीमा पड़ने के संकेतों के बावजूद मौद्रिक उपायों के और कसाव के आसार बनते नजर आ रहे हैं।
आलोच्य सप्ताह के दौरान मुद्रास्फीति की दर में 0.81 प्रतिशत की बढ़ोतरी दालों, फल, सब्जियों, घरेलू, विदेशी खाद्य तेलों, लोहा आदि के मंहगा होने से दर्ज की गई।
पिछले तीन सप्ताह से लगातार पांच प्रतिशत से ऊपर मुद्रास्फीति एक मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में 5.11 प्रतिशत और पिछले साल आलोच्य अवधि में 6.51 प्रतिशत थी। मुद्रास्फीति का आलोच्य अवधि का स्तर 28 अप्रैल 2007 के 6.01 प्रतिशत के बाद का अधिकतम है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी.रंगराजन भी मुद्रास्फीति को ‘सामान्य’ से कुछ अधिक मान रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति के ऊंचा रहने पर ब्याज दरों को नीचे लाना मुश्किल होगा।
रंगराजन की नजर में मुद्रास्फीति को चार से पांच प्रतिशत के बीच होना चाहिए और अच्छा हो कि यह चार प्रतिशत के आसपास रहे।
सरकार और रिजर्व बैंक भी मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के नीचे लाने के लिए पिछले करीब दो वर्ष के दौरान एक-एक करके कई उपाय कर चुके हैं। खाद्य तेलों की कीमतों को काबू में करने के लिए इसी सप्ताह देश से इनका निर्यात एक वर्ष तक रोकने का फैसला किया गया है। लेकिन विश्व बाजार में कच्चे तेल के उछाल मारते दाम और विभिन्न खाद्यान्नों की आसमान छूती कीमतों ने लगता है सभी उपायों पर पानी फेर दिया है।
आर्थिक विकास संस्थान में अर्थशास्त्री एन.आर भानुमूर्ति मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी को आश्चर्यजनक मान रहे हैं। उनका कहना है कि इस स्तर को देखते हुए आने वाले कुछ महीनों तक और मौद्रिक नीति सख्त बनी रहेगी।
रोजमर्रा की इस्तेमाल की वस्तुओं के महंगा होने से मुद्रास्फीति की दर में पिछले साल दिसम्बर से ही मजबूती का रुख बना हुआ है। फरवरी माह के दौरान पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमशः दो तथा एक रुपए की बढ़ोतरी ने भी मुद्रास्फीति को बढ़ाने में योगदान दिया।
रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिए पिछले करीब एक साल से ब्याज दरों को पौने आठ प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा। इससे पहले तेजी से बढ़ रही आर्थिक गति के बीच मंहगाई को काबू में रखने के लिए जून 2006 से मार्च 2007 के बीच पांच बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की थी।
मुद्रास्फीति के बढ़ने के साथ ही 2006-07 में पिछले 18 वर्ष की सर्वाधिक 9.6 प्रतिशत की आर्थिक गति के चालू वित्त वर्ष में कुछ धीमा पड़कर 8.7 प्रतिशत रह जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। जे.पी. मॉर्गन का मानना है कि अगले वर्ष यह रफ्तार सात प्रतिशत रह जाएगी।
उधर अर्थव्यवस्था में मांग घटने का असर साफ झलकने लगा है। इस वर्ष जनवरी में कारखाना उत्पादन की वृद्धि रफ्तार पिछले साल के 11.6 प्रतिशत के मुकाबले आधे से भी कम 5.3 प्रतिशत रह गई। छह प्रमुख बुनियादी सुविधाओं का सूचकांक भी जनवरी में पिछले साल की तुलना में आधी रफ्तार ही हासिल कर पाया है।
वित्तमंत्री बार-बार संकेत दे चुके हैं कि मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए जो भी जरुरी कदम उठाने पड़ेंगे, सरकार उसके लिए पूरी तरह तैयार है।
आठ मार्च को समाप्त सप्ताह में सकल उपभोक्ता वस्तुओं का आधिकारिक थोक मूल्य सूचकांक भी 0.8 प्रतिशत बढ़कर 220 अंक से 221.8 अंक पर पहुंच गया।
विश्लेषक मुद्रास्फीति की दर में इस तीव्र बढ़ोतरी को उम्मीदों से अधिक मान रहे हैं और उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि के धीमा पड़ने के संकेतों के बावजूद मौद्रिक उपायों के और कसाव के आसार बनते नजर आ रहे हैं।
आलोच्य सप्ताह के दौरान मुद्रास्फीति की दर में 0.81 प्रतिशत की बढ़ोतरी दालों, फल, सब्जियों, घरेलू, विदेशी खाद्य तेलों, लोहा आदि के मंहगा होने से दर्ज की गई।
पिछले तीन सप्ताह से लगातार पांच प्रतिशत से ऊपर मुद्रास्फीति एक मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में 5.11 प्रतिशत और पिछले साल आलोच्य अवधि में 6.51 प्रतिशत थी। मुद्रास्फीति का आलोच्य अवधि का स्तर 28 अप्रैल 2007 के 6.01 प्रतिशत के बाद का अधिकतम है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी.रंगराजन भी मुद्रास्फीति को ‘सामान्य’ से कुछ अधिक मान रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति के ऊंचा रहने पर ब्याज दरों को नीचे लाना मुश्किल होगा।
रंगराजन की नजर में मुद्रास्फीति को चार से पांच प्रतिशत के बीच होना चाहिए और अच्छा हो कि यह चार प्रतिशत के आसपास रहे।
सरकार और रिजर्व बैंक भी मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के नीचे लाने के लिए पिछले करीब दो वर्ष के दौरान एक-एक करके कई उपाय कर चुके हैं। खाद्य तेलों की कीमतों को काबू में करने के लिए इसी सप्ताह देश से इनका निर्यात एक वर्ष तक रोकने का फैसला किया गया है। लेकिन विश्व बाजार में कच्चे तेल के उछाल मारते दाम और विभिन्न खाद्यान्नों की आसमान छूती कीमतों ने लगता है सभी उपायों पर पानी फेर दिया है।
आर्थिक विकास संस्थान में अर्थशास्त्री एन.आर भानुमूर्ति मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी को आश्चर्यजनक मान रहे हैं। उनका कहना है कि इस स्तर को देखते हुए आने वाले कुछ महीनों तक और मौद्रिक नीति सख्त बनी रहेगी।
रोजमर्रा की इस्तेमाल की वस्तुओं के महंगा होने से मुद्रास्फीति की दर में पिछले साल दिसम्बर से ही मजबूती का रुख बना हुआ है। फरवरी माह के दौरान पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमशः दो तथा एक रुपए की बढ़ोतरी ने भी मुद्रास्फीति को बढ़ाने में योगदान दिया।
रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिए पिछले करीब एक साल से ब्याज दरों को पौने आठ प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा। इससे पहले तेजी से बढ़ रही आर्थिक गति के बीच मंहगाई को काबू में रखने के लिए जून 2006 से मार्च 2007 के बीच पांच बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की थी।
मुद्रास्फीति के बढ़ने के साथ ही 2006-07 में पिछले 18 वर्ष की सर्वाधिक 9.6 प्रतिशत की आर्थिक गति के चालू वित्त वर्ष में कुछ धीमा पड़कर 8.7 प्रतिशत रह जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। जे.पी. मॉर्गन का मानना है कि अगले वर्ष यह रफ्तार सात प्रतिशत रह जाएगी।
उधर अर्थव्यवस्था में मांग घटने का असर साफ झलकने लगा है। इस वर्ष जनवरी में कारखाना उत्पादन की वृद्धि रफ्तार पिछले साल के 11.6 प्रतिशत के मुकाबले आधे से भी कम 5.3 प्रतिशत रह गई। छह प्रमुख बुनियादी सुविधाओं का सूचकांक भी जनवरी में पिछले साल की तुलना में आधी रफ्तार ही हासिल कर पाया है।
वित्तमंत्री बार-बार संकेत दे चुके हैं कि मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए जो भी जरुरी कदम उठाने पड़ेंगे, सरकार उसके लिए पूरी तरह तैयार है।
आठ मार्च को समाप्त सप्ताह में सकल उपभोक्ता वस्तुओं का आधिकारिक थोक मूल्य सूचकांक भी 0.8 प्रतिशत बढ़कर 220 अंक से 221.8 अंक पर पहुंच गया।
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