Monday 17 March, 2008

ब्याज दर घटने की राह में महंगाई का रोड़ा

नई दिल्ली। ब्याज दरें घटने की बाट जोह रहे लोगों को फिर एक बार निराशा हाथ लग सकती है, क्योंकि विश्व बाजार में कच्चे तेल और खाद्यान्नों की आसमान छूती कीमत के कारण बढ़ती महंगाई इसके रास्ते में खड़ी हो गई है और अब ऐसा लग रहा है कि रिजर्व बैंक अगले महीने जारी करने वाली अपनी सालाना ऋण एवं मौद्रिक नीति में ब्याज दरें घटाने की बजाय महंगाई पर अंकुश लगाने के उपायों को ही प्राथमिकता देगा।

देश के अग्रणी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री (एसोचैम) ने एक ताजा सर्वेक्षण में इस दिशा में अहम तर्क पेश किए हैं। उद्योग मंडल के ताजा सर्वेक्षण में ज्यादातर कम्पनियों के शीर्ष कार्याधिकारियों का यही विचार है कि अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें कम होने की दिशा में कोई ठोस शुरुआत करेगा।

एसोचैम ने 130 कम्पनियों के शीर्ष अधिकारियों से इस बारे में उनकी राय पूछी तो उसमें से 85 प्रतिशत का कहना था कि केन्द्रीय बजट में उद्योगों की लागत कम रखने के लिए कई वित्तीय उपायों की घोषणा की गई है लेकिन इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बढ़ रही महंगाई से अछूता रखना मुश्किल काम होगा।

उल्लेखनीय है कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 110 डॉलर प्रति बैरल की सीमा लांघ चुके हैं और भारतीय खरीद मूल्य भी 100 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में पहुंच चुका है। इसी प्रकार विश्व बाजार में गेहूं, खाद्य तेल और दूसरी खाद्य जिंसों के दाम भी पिछले दो-तीन साल में काफी बढ़ चुके हैं।

एसोचैम अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत के मुताबिक इस साल जनवरी में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक पिछले साल के 11.6 प्रतिशत के मुकाबले घटकर 5.7 प्रतिशत रह गया जबकि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर आलोच्य अवधि में 12.3 प्रतिशत से घटकर 5.9 प्रतिशत पर गई। सरकार ने बढ़ती महंगाई पर अंकुश रखने के भरसक प्रयास किए ताकि इससे ब्याज दरों को भी बढ़ने से रोका जा सके। ऐसी स्थिति में अब रिजर्व बैंक के सामने भी बहुत कम विकल्प सामने रह गए हैं।

थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर एक मार्च को समाप्त सप्ताह में 5.11 प्रतिशत के आंकड़े तक पहुंच गई है। इससे पिछले सप्ताह यह 5.02 प्रतिशत पर थी। इसमें प्राथमिक वस्तुओं का समूह सूचकांक इससे पिछले सप्ताह के मुकाबले 6.9 प्रतिशत बढ़ गया। पेट्रोल और डीजल के खुदरा दाम बढ़ाए जाने के बाद ईंधन समूह का सूचकांक 5.4 प्रतिशत बढ़ गया।

सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 67 प्रतिशत कार्याधिकारियों का कहना था कि नौ प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर काफी आकर्षक है इसके बावजूद सरकार की प्राथमिकता महंगाई पर अंकुश रखने की ही होगी। सरकार ने हालांकि बजट में उद्योगों के लिए केन्द्रीकृत उत्पाद शुल्क की दर 16 से घटाकर 14 प्रतिशत कर दी और साथ ही ऑटोमोबाइल और फार्मा सहित कुछ क्षेत्र में इसमें बड़ी कमी की है इसके बावजूद 83 प्रतिशत उद्योगपतियों का मानना है कि इस प्रकार के उपायों से महंगाई के दबाव को रोकना आसान नहीं होगा क्योंकि बढ़ती लागत की वजह से ज्यादातर कम्पनियों शुल्कों की कमी को उपभोक्ता तक पहुंचाने में सफल नहीं हो पाएंगी।

उद्योगपतियों के मुताबिक महंगाई अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका, चीन, यूरोप इस समय महंगाई से जूझ रही है ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था कों इससे अपने आप को बचाए रखना मुश्किल काम होगा। महंगाई बढ़ेगी तो ब्याज दरों को भी निम्न स्तर पर बनाए रखना उतना ही मुश्किल होगा।

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