इस साल अप्रैल से जून तक की पहली तिमाही में ये बढ़ोत्तरी ऐसे समय हुई है जब जानकार आकलन लगा रहे थे कि बढ़ोत्तरी 8.9 फ़ीसदी रहेगी। लेकिन बढ़ोत्तरी रही 9.3 फ़ीसदी।
लेकिन भारत सरकार इस बात को लेकर चिंतित है कि उच्च विकास दर के कारण क़ीमतें भी बढ़ रही हैं। पिछले 10 सालों में भारत की औसत विकास दर सात फ़ीसदी रही है, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है।
दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले देशों में से एक भारत में बढ़ते विकास दर से लोगों का जीवन स्तर सुधरा तो है ही इससे विदेशी निवेश को भी बढ़ावा मिला है।क़ीमतें
लेकिन ज़्यादा विकास दर से क़ीमतें भी बढ़ी हैं, ख़ासकर नियमित इस्तेमाल की चीज़ें जैसे- गेहूँ, प्याज़ और सब्ज़ियाँ।
यह भी माना जा रहा है कि इतने विकास दर के बावजूद अभी भी भारत की 60 फ़ीसदी आबादी अभी भी ग़रीबी रेखा के आसपास रहती है।
देश के बढ़ते विकास दर के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पहले ही कह चुके हैं कि देश में आय के आधार पर लोगों के बीच बढ़ती खाई को पाटने की आवश्यकता है।
विकास
पिछले वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 9.4 फ़ीसदी की दर से बढ़ी थी। जो पिछले 18 वर्षों में सर्वाधिक था।
इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में 9.3 फ़ीसदी विकास दर से बढ़ती अर्थव्यवस्था का संकेत मिलता है।
साथ ही पिछले 15 महीनों में पहली बार मुद्रा स्फ़ीति की दर भी चार फ़ीसदी से नीचे पहुँच गई है। 18 अगस्त को ख़त्म हुए सप्ताह में मुद्रा स्फ़ीति की दर 3.94 फ़ीसदी रही।
पहली तिमाही में विकास दर में आई तेज़ी को निर्माण और सेवा क्षेत्र में आई उछाल से जोड़कर देखा जा रहा है। निर्माण क्षेत्र में 11.9 फ़ीसदी और सेवा क्षेत्र में 10.6 फ़ीसदी वार्षिक दर से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।
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