नई दिल्ली: बैंक अब खेती-बाड़ी के लिए दिल खोल कर ऋण दे रहे हैं। ताजा आंकड़े इसके गवाह हैं। वाणिज्यिक, सहकारी एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने वर्ष 2006-07 के दौरान कृषि क्षेत्र के लिए लक्ष्य से 16 प्रतिशत अधिक ऋण दिया। यह लगातार तीसरा वर्ष है जब बैंकों ने सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य से अधिक राशि इस क्षेत्र के लिए जारी की है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक गत 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष में वाणिज्यिक, सहकारी एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने खेती-बाड़ी के लिए कुल मिलाकर 20 खरब तीन अरब रुपये उपलब्ध कराए, जबकि सरकार ने इस दौरान 17 खरब 50 अरब रुपये मुहैया कराने का लक्ष्य रखा था। यदि प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो यह लक्ष्य से 16 प्रतिशत अधिक है।
इससे पहले वर्ष 2005-06 में बैंकों ने 14 खरब 10 अरब रुपये के तय लक्ष्य के मुकाबले 18 खरब रुपये का ऋण स्वीकृत किया था। यह लक्ष्य से 28 प्रतिशत अधिक था। वर्ष 2004-05 में भी कृषि ऋण कुल मिलाकर 12 खरब 53 करोड़ रुपये रहा था जो लक्ष्य से काफी ज्यादा था।
बैंकिंग क्षेत्र में निजी बैंकों के खासे दखल के बाद भी खेती-बाड़ी की ओर बढ़ते रुझान को एक अच्छा संकेत माना जा रहा है। वजह यह है कि कुछ वर्ष पहले तक कृषि क्षेत्र के लिए धनराशि उपलब्ध कराना एक दायित्व माना जाता था जिसे बैंक बेमन से पूरा करते थे।
एक अग्रणी सरकारी बैंक के एक उच्च पदस्थ अधिकारी का कहना है कि अब खेती-बाड़ी क्षेत्र में भी नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। सबसे अलग बात यह दिख रही है कि अब किसान फसल कटने के बाद बैंकों का रुख करने से कतराते नहीं हैं, बल्कि पहले ऋण की अदायगी करते हैं। किसानों के रुख में आए इस बदलाव का सकारात्मक असर वर्ष 2004-05 में नजर आया।
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