Monday, 10 September 2007

बैंकों को महंगी पड़ेगी महंगाई के खिलाफ जंग

नई दिल्ली: महंगाई के खिलाफ रिजर्व बैंक की जंग भारतीय बैंकों को संभवत: काफी महंगी पड़ेगी। जी हां, वैधानिक दरों मसलन रेपो रेट में बेतहाशा बढ़ोतरी से बैंकों की लाभप्रदता काफी प्रभावित होने के आसार नजर आ रहे हैं।
चालू वित्त वर्ष के दौरान भारतीय बैंकों का शुद्ध मुनाफा मार्जिन 0.2 प्रतिशत घटकर 1.4 फीसदी रह जाने की संभावना है। इस तथ्य का खुलासा क्रिसिल और फिक्की की एक रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट में इसके लिए भारतीय रिजंर्व बैंक की कठोर मौद्रिक नीति को जिम्मेदार माना गया है। रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति के खिलाफ जंग में ब्याज दरों को अपना प्रमुख हथियार बना रखा है। पिछले दो वर्षो में रेपो रेट में 1.75 फीसदी की वृद्धि की गई है। इसी तरह नकद आरक्षित अनुपात भी दो फीसदी बढ़ा दिया गया है। इसके चलते जमाराशि जुटाने की लागत पिछले वर्ष 60 फीसदी तक बढ़ गई है। दूसरी तरफ कर्ज की मांग कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसका असर यह हो रहा है कि बैंक ज्यादा लागत पर राशि जुटा रहे हैं और फिर इसे कर्ज के तौर पर आंवटित कर रहे हैं। इससे बैंकों की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी।
इस आधार पर रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि रिजर्व बैंक को अब ब्याज दरें कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए। आरबीआई रेपो रेट सहित अन्य वैधानिक दरों को कम कर बैंकों की खराब होती हालत को यही पर रोक सकता है। बैंकों की लाभप्रदता बढ़ाने का यही एकमात्र रास्ता नजर आता है। वैसे लगातार ठोस कोशिशों के फलस्वरूप बैंकों के फंसे पड़े कर्जो (एनपीए) में कमी हो रही है। अगर जमा जुटाने की लागत में सुधार नहीं हुआ तो एनपीए की समस्या आगे फिर सर उठा सकती है। हाल के दिनों में बैंकों ने रिटेल और हाउसिंग क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है। इससे भी कर्ज की गुणवत्ता पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
रिपोर्ट से यह बात भी सामने आई है कि कर्ज पर लगाम लगाने की केंद्रीय बैंक की कोशिश पूरी तरह से विफल साबित हो रही है। पिछले तीन महीनों के दौरान ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद वर्ष 2007-08 के दौरान बैंक ऋणों में 25 फीसदी की खासी वृद्धि होने की संभावना है। जाहिर है इस कर्ज को पूरा करने के लिए बैंकों को बड़े पैमाने पर धनराशि जुटानी होगी। मौजूदा परिस्थितियों में बैंकों को ज्यादा लागत पर राशि जुटानी पड़ रही है। क्रिसिल और फिक्की का मानना है कि रिजर्व बैंक को इन परिस्थितियों को ध्यान में रख कर ही आगे की नीतियां तय करनी चाहिए।

1 comment:

Anonymous said...

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