Wednesday 2 January, 2008

एक बोझ तो गया

इसे नए साल का तोहफा ही कहा जाना चाहिए। जब से सेबी ने यह प्रस्ताव रखा था कि म्युचुअल फंड निवेश से एंट्री लोड खत्म कर दिया जाना चाहिए, तब से आम निवेशक इस फैसले का इंतजार कर रहे थे। सेबी के निर्देश के तहत अब 4 जनवरी से जो भी निवेशक, एजेंटों या डिस्ट्रिब्यूटरों की मदद लिए बिना सीधे फंड में पैसा लगाएगा, उससे एंट्री लोड नहीं वसूला जा सकेगा। अब तक फंड स्कीमें करीब सवा 2 फीसदी एंट्री लोड लेती आई हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप फंड में दस हजार रुपये लगाते हैं, तो 225 रुपये काट लिए जाएंगे और आपका शुरुआती निवेश 9775 रुपये ही माना जाएगा। एंट्री लोड के नाम पर लिया जाने वाला यह पैसा एजेंटों और डिस्ट्रिब्यूटरों को अच्छा खासा कमिशन देने में खर्च होता है।

म्युचुअल फंड इंडस्ट्री का विकास हमारे यहां इस तरह हुआ है कि एजेंट और डिस्ट्रीब्यूटर ही निवेश का इंतजाम कराते हैं। सिर्फ एक फीसदी लोग ऐसे हैं, जो सीधे फंड के दफ्तर में पहुंचकर या इंटरनेट के जरिए पैसा लगाते हैं। लेकिन यह बात समझना कतई मुश्किल नहीं था कि सीधे पहुंचने वाले निवेशक से एंट्री लोड लेना सरासर गलत है। यह गलत व्यवस्था इसलिए जारी थी क्योंकि कमिशनखोरी में सभी पक्षों को सहूलियत थी, सिर्फ ग्राहक को छोड़कर। इसीलिए जब सेबी ने लोड हटाने का प्रस्ताव रखा, तो कोई खुश नहीं दिखा। डिस्ट्रिब्यूटरों का कहना था कि ज्यादातर निवेशक समझदार नहीं होते, इसलिए सलाहकार के तौर पर हमारी अहमियत है। यह बात सही हो सकती है, लेकिन इसे ग्राहक के लिए शर्त में क्यों बदला जाए?

ग्राहक के पास अब दोनों विकल्प हैं, वह चाहे तो सीधे निवेश करे और एंट्री लोड से निजात पाए या फिर अगर उसे एजेंट की मदद जरूरी लगती है, तो एंट्री लोड को सेवा शुल्क समझ ले। खुले बाजार का मतलब ही सभी विकल्पों का मौजूद होना होता है। खेद इस बात का है कि इस सिस्टम को लागू करने का आइडिया इतनी देर से आया। म्युचुअल फंड आम निवेशक के लिए सबसे बेहतरीन विकल्प माने जाते हैं। यह विकल्प अब और भी आकर्षक हो गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका फायदा उठाएंगे और इस सिलसिले से गुजरते हुए अपनी जानकारी में भी इजाफा करेंगे।

No comments: