नई दिल्ली : देश के शेयर बाजार ने सोमवार को इतिहास रचा। सेंसेक्स में एक दिन में 1408 पॉइंट की गिरावट दर्ज की गई। एक दिन में कारोबारियों को छह लाख करोड़ रुपये का घाटा हो गया। यह पहला मौका था जब सेंसेक्स के सभी 30 शेयरों में गिरावट आई। मंगलवार भी सेंसेक्स के लिए अमंगल साबित हुआ। बाजार खुलते ही गिरा। लोअर सर्किट के कारण इसे बंद करना पड़ा। दो ही दिनों में सेंसेक्स 19,000 से गिरकर 16,000 के नीचे आ पहुंचा। वित्त मंत्री के आश्वासनों के बावजूद निवेशकों का बाजार पर से भरोसा गायब हो गया है।
यूं तो किसी भी गिरावट की सैद्धांतिक वजह एक ही होती है कि बाजार से खरीदार कम और बेचने वाले ज्यादा हो जाएं। सोमवार और मंगलवार को यही हुआ। लेकिन इसके अलावा भी कुछ वजहें हैं , जो इस गिरावट के लिए जिम्मेदार हैं।
वर्ल्ड वाइड मंदी की आशंका
देश के शेयर बाजारों में गिरवाट का जो सबसे बड़ा कारण है वह है अमेरिका और ईस्ट एशिया में आए मंदी के लक्षण। अब देखते हैं कि आखिर ये कैसे बाजार को प्रभावित कर रहे हैं ? भारतीय शेयर बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों का दबदबा बहुत अधिक बढ़ गया था। पहले से ही ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि अगर विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अपना पैसा खींच लिया तो शेयर बाजारों में उथल-पुथल हो सकती है और हुआ भी यही।
भारतीय शेयर बाजारों में तेजी का दौर जारी था और निवेशक जबर्दस्त लाभ में चल रहे थे। यहां के संस्थागत विदेशी निवेशकों में बड़ी संख्या में अमेरिकी हैं। अमेरिका और ईस्ट एशिया में आई मंदी के लक्षण को देखकर ये डर गए। हालांकि , इस मंदी क्या असर पड़ेगा अभी कुछ कहा नहीं जा सकता पर इन्हें लग रहा है कि कहीं मंदी पूरी दुनिया को अपनी चपेट में न ले ले। वैसी स्थिति में भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता है। यह सब देखकर निवेशकों को लगा कि यही मौका है कि अपने लाभ को भारतीय मार्केट्स से कैश करा लिया जाए और उन्होंने बिकवाली शुरू कर दी। चूंकि मार्केट में उनकी भागीदारी काफी अधिक है , इसलिए उनकी हलचल का असर भी सबसे अधिक पड़ता है।
घरेलू निवेशक
विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली से भारतीय निवेशक भी घबराकर बाजार से पैसा निकालने लगते हैं , जिस कारण बाजार और गिर जाता है। और फिर गिरने का सर्कल बन जाता है। यह उथल-पुथल का दौर 3-4 दिन चलता है। उसके बाद बाजार कुछ दिन ठहरेगा। फिर एक बार उथल-पुथल का दौर रहेगा। उसके कुछ दिन बाद बाजार सामान्य ढंग से चलने लगेगा।
इसके अलावा , तेजी के दौर में बड़ी संख्या में ऐसे सट्टेबाज बाजार में आ जाते हैं जो रातोरात अमीर बन जाना चाहते हैं। इनमें अधिकतर कर्ज लेकर इन्वेस्ट करते हैं। जब बाजार गिरने लगता है तो ये सबसे पहले पैसा समेट कर भाग जाना चाहते हैं। ये हड़बड़ी में बिकवाली करते हैं , जिससे बाजार और अधिक गिर जाता है।
बड़े आईपीओ
हालांकि ये बहुत अधिक प्रभावित नहीं करते हैं , लेकिन जब बाजार में बिकवाली का दौर हो तो यह बाजार डुबाने में और सहयोगी साबित होते हैं। चूंकि लोग पहले से ही पैसा लगा चुके होते हैं , इसलिए बाजार में पैसे की कमी हो जाती है , जिसका असर नए निवेश पर पड़ता है।
गिरावट को रोकने का उपाय
बाजार को गिरने से रोकने का उपाय अब सरकार ही कर सकती है। चूंकि संस्थागत निवेशकों का स्टॉक काफी बड़ा होता है इसलिए उनकी कमी की भरपाई रिटेल इन्वेस्टर्स नहीं कर सकते हैं। इसके लिए संस्थागत घरेलू निवेशकों की जरूरत पड़ेगी। इन घरेलू संस्थागत निवेशकों की मदद से सरकार मार्केट्स की गिरावट को थाम सकती है।
रिटेल इन्वेस्टरों के लिए मौका
अभी बाजार के गिरने का सबसे अधिक फायदा रिटेल इन्वेस्टरों को होगा। इस वक्त सस्ती कीमतों पर पर्याप्त शेयर बाजार में मौजूद होंगे। इस वक्त जो भी निवेशक सोच समझकर खरीदारी करेगा वह फायदे में रहेगा। जरूरत है सस्ते में शेयर खरीद कर कुछ इंतजार करने की। बहुत जल्दबाजी नहीं दिखाएं। कुल मिलाकर देखें तो इस गिरावट ने छोटे निवेशकों के लिए लाभ कमाने का नया रास्ता खोल दिया है।
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