पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड में इनवेस्टमेंट का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ा है। हालांकि इसके बारीक पहलुओं के बारे में जानकारी नहीं होने से कई बार इनवेस्टर्स काफी उलझन में पड़ जाते हैं। खासकर इस बाबत ट्रांजेक्शन के दौरान कई बार आप टैक्स संबंधी परेशानियों से रूबरू होते हैं। दरअसल म्यूचुअल फंड के ट्रांजेक्शन का दायरा काफी बढ़ चुका है और हर ट्रांजेक्शन को ट्रैक करना काफी मुश्किल है। इसके अलावा हर ट्रांजेक्शन के दौरान टैक्स का पचड़ा भी सामने आ खड़ा होता है।
अगर आप कुछ बातों का ध्यान रखें तो इन परेशानियों से निपटने में काफी हद तक सहूलियत मिलेगी।
पेश आनेवाली दिक्कतें
इनवेस्टर्स को सामान्यतया दो तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पहला जब किसी एमएफ स्कीम की खास योजनाओं का विलय होता है। ऐसी सूरत में किसी खास स्कीम के होल्डर को विलय के बाद की स्कीम में यूनिट आवंटित किए जाते हैं। इसके मद्देनजर टैक्स का मसला सामने आता है।
इसके अलावा सिस्टमेटिक ट्रांसफर प्लान (एसटीपी) के दौरान भी इनवेस्टर्स को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके तहत खास राशि को कर्ज संबंधी स्कीम से इक्विटी स्कीम में हर महीने ट्रांसफर की जाती है। इसका मकसद इनवेस्टर्स को रेग्युलर इनवेस्टमेंट का लाभ मुहैया कराना होता है। यहां फोकस रेग्युलर इनवेस्ट और लाभ पर होता है, लेकिन कई लोग यह बात भूल जाते हैं कि इसका प्रभाव इनवेस्टर्स द्वारा किए गए ऑरिजिनल इनवेस्टमेंट के टैक्स पर भी पड़ता है।
क्या होता है प्रभाव
स्कीमों के विलय और नई स्कीम से पहले की प्रक्रिया के बारे में भी गौर करना जरूरी है। इसके तहत सबसे पहले पुराने स्कीम के यूनिटों की बिक्री की जाती है। इसके तहत एक तय राशि पर वर्तमान यूनिटों का रिडंप्शन होता है। इसके बाद नई स्कीम में निश्चित भाव पर अडिशनल यूनिटों की खरीदारी की प्रक्रिया अपनाई जाती है। ज्यादातर इनवेस्टर्स को यह प्रक्रिया काफी आसान लगती है, क्योंकि उन्हें पुरानी यूनिटों के बदले नए यूनिट मिलते हैं। हालांकि इस प्रक्रिया में ऑरिजिनल यूनिट की बिक्री पर होनेवाले नफानुकसान भी टैक्स के दायरे में आता है। इक्विटी संबंधी स्कीम में बिक्री के वक्त ही सिक्युरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी) देना पड़ता है। लॉन्गटर्म कैपिटल गेन जीरो होता है, जबकि शॉटटर्म कैपिटल गेन 10 फीसदी लगता है। एक इक्विटी स्कीम से दूसरे इक्विटी स्कीम में ट्रांसफर के दौरान भी कई प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं। अगर इसमें शॉटटर्म गेन होता है, तो टैक्स लाइबलिटी इनवेस्टर को वहन करनी होगी। मसलन आपने 8 महीने पहले 22 रुपये की दर से 500 यूनिट खरीदें। अगर इस स्कीम का विलय किसी दूसरी स्कीम के साथ किया जाता है और एग्जिट प्राइस २५ रुपये प्रति यूनिट है, तो 1500 रुपये की शॉटटर्म कैपिटल गेन राशि पर 10 फीसदी टैक्स और सरचार्ज व सेस की राशि आपको अदा करनी होगी।
एसटीपी की उलझन
सिस्टमेटिक ट्रांसफर प्लान (एसटीपी) में कई ट्रांजेक्शन के होने से कई बार इनवेस्टर्स उलझन में पड़ जाते हैं। ऐसी सूरत में कई बार इन्वेस्टर्स को पता नहीं चलता कि क्या हो रहा है। ऐसे मामलों में हर महीने इक्विटी संबंधी स्कीम को डेट (कर्ज) संबंधी स्कीम में ट्रांसफर किया जाता है। इसमें अगर इनवेस्टर लाभांश का विकल्प भी चुनते हैं, तो भी उनके नेट ऐसेट वैल्यू (एनएवी) में थोड़ा अंतर आ जाता है, क्योंकि इस स्कीम के तहत अर्जित आय का पूरा हिस्सा कभी भी इनवेस्टर्स को नहीं अदा किया जाता। ऐसी स्थिति में हर ट्रांजेक्शन में यूनिटों पर अर्जित आय टैक्स के लिहाज से अलग-अलग होती है।
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