Tuesday, 11 December 2007

पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने के मूड में सरकार

नई दिल्ली : केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने का मन बना रही है। 14 दिसंबर को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) की बैठक में तेल कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए एक्साइज और कस्टम ड्यूटी में कमी के अलावा तेल की कीमतें बढ़ाने पर विचार होगा। राज्य सरकारों द्वारा वसूले जा रहे सेल्स टैक्स में कमी का विकल्प जीओएम के पास है। पेट्रोलियम सचिव एम. एस. श्रीनिवासन का कहना कि सारा बोझ सरकार नहीं उठा सकती। कुछ बोझ तो आम आदमी को सहना ही पड़ेगा।

उधर, लेफ्ट पार्टियों का कहना है कि वे आम आदमी पर कोई भी नया बोझ डालने का विरोध करेंगे। वैसे, अभी इस बारे में हमसे बातचीत नहीं की गई है। विपक्षी बीजेपी का मानना है कि वोट बैंक की राजनीति के कारण यह नौबत आई है। इसी के कारण तेल कंपनियों का दिवालिया निकल रहा है।

एनबीटी से बातचीत में पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने कहा कि हमारी कोशिश रहेगी कि आम आदमी पर कम से कम भार डाला जाए। यही कारण है कि तेल कंपनियों को करीब 24 हजार करोड़ रुपये के ऑयल बॉन्ड्स जारी किए जा रहे हैं। एक्साइज और कस्टम ड्यूटी घटाने का प्रस्ताव है। इसी के आधार पर जीओएम फैसला लेगा।

वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि ड्यूटी कट पर मंत्रालय से अभी कोई बातचीत नहीं हुई है। संभव है जीओएम की बैठक में कोई प्रस्ताव आए, तब मंत्रालय से सुझाव मांगा जाए। अगर ऐसा हुआ तो दाम बढ़ाने का फैसला जीओएम की अगली बैठक में ही हो पाएगा। हालांकि, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ड्यूटी कट की मांग पहले ही खारिज कर चुके हैं। अभी पेट्रोल और डीजल पर 7.5 फीसदी की कस्टम ड्यूटी और 6 फीसदी की एक्साइज ड्यूटी लगती है।

तेल कंपनियां हर हालत में प्राइस राइज चाहती हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि कंपनियों को पेट्रोल की खुदरा बिक्री पर प्रति लीटर 8.74 रुपये का और डीजल पर 9.92 रुपये का घाटा हो रहा है। इंडियन ऑयल के चेयरमैन सार्थक बहुरिया कहते हैं कि सिर्फ पेट्रोल-डीजल बेचने पर तेल कंपनियों को सालाना घाटा 70 हजार करोड़ रुपये से ऊपर जा चुका है। पॉलिसी यह है कि पेट्रोलियम उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय कीमत के अनुसार बेचा जाएगा। सरकार को इसी नीति पर चलना चाहिए।

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