जासूसी आमतौर पर या तो किसी अपराधी को पकड़ने के लिए होती है या किसी की हर हरकत पर नजर रखने के लिए। इसके लिए आजकल लोग पैसा देकर निजी जासूसों को भी लगाते हैं। अब कॉर्पोरेट जगत भी जासूसों का इस्तेमाल कर रहा है।
व्यावसायिक माहौल में प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ-साथ सभी कंपनियाँ अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी के बारे में जानने के लिए जासूसों को लगा रही हैं। कॉर्पोरेट जगत में इन जासूसों को 'कॉर्पोरेट इंटेलिजेंस' के नाम से जाना जाता है। बिजनेस की गतिविधियाँ बढ़ने के साथ ही इन कॉर्पोरेट इंटेलिजेंस कंपनियों की जरूरत भी बढ़ने लगी है।
दरअसल सभी कंपनियाँ खुद की गुणवत्ता को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए दूसरी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के उत्पादों और कार्यशैली पर नजर रखना चाहती हैं। इसके लिए वे सीधे तौर पर जासूसों का सहारा लेने लगी हैं।
जासूसों का इस्तेमाल करने वाली कंपनियाँ जासूसों से यह उम्मीद भी रखती हैं कि वे दूसरी कंपनियों के कर्मचारियों और योजनाओं पर नजर रखें।
एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसीज इन इंडिया के प्रमुख विक्रमसिंह का कहना है कि कॉर्पोरेट जासूस कंपनियों के नए उत्पादों, कंपनी में उच्च पदों और वेतन पर कार्यरत कर्मचारियों आदि की जानकारी भी रखते हैं। इससे जासूसों की अहमियत कॉर्पोरेट स्तर पर बढ़ती जा रही है।
भारत में कॉर्पोरेट जासूस अलग-अलग तरह से काम करते हैं। पहले अन्य कंपनी के उत्पादों, योजनाओं और कर्मचारियों की जानकारी रखते हैं। दूसरे कंपनी में शामिल होने जा रहे नए कर्मचारियों पर नजर रखते हैं और इसके अलावा कंपनी की पार्टनरशिप, अन्य बिजनेस सौदे आदि पर निगरानी रखते हैं।
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