Tuesday, 11 December 2007

निवेश के लिए पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस की मदद लें

निवेश
सभी करते हैं, लेकिन इसका मैक्सिमम फायदा वही लोग उठा पाते हैं, जो बेहतर समझबूझ के साथ निवेश करते हैं। बेहतर समझबूझ का मतलब है, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (पीएमएस) की मदद लेना। आइए इस बारे में विस्तार से बात करते हैं:

पैसे कमाना मुश्किल भरा काम है, लेकिन उनका इन्वेस्टमेंट करने में भी कम उलझन नहीं है। सही निवेश के जरिए आप अपने पैसे पर बेहतर रिटर्न पा सकते हैं। पर मेहनत की गाढ़ी कमाई का यदि गलत जगह पर निवेश हो जाए तो आपकी माली हालत पर बेहद बुरा असर पड़ सकता है। आज बाजार में कई तरह के इन्वेस्टमेंट प्रॉडक्ट्स मौजूद हैं। इनमें से सही प्रॉडक्ट की पहचान और अपने मनमाफिक निवेश करने की सहूलियत तलाशना जाहिर तौर पर टेढ़ी खीर है। आज की आपाधापी भरी जिंदगी में लोगों के पास वक्त की बेहद कमी रहती है। ऐसे में निवेश के गणित के लिए वक्त निकालना मुमकिन नहीं होता। इतना ही नहीं, एक आम निवेशक बाजार की बारीकियों को भी बखूबी नहीं समझता। लिहाजा उसे एक ऐसी सर्विस की दरकार है जो उसकी जरूरतों और सीमाओं को समझते हुए निवेश की बेहतर तरकीब बताए। इस मामले में म्यूचुअल फंड (एमएफ) एक हद तक निवेशकों की जरूरतों पर खरे उतरते हैं। एमएफ हाउसों के फाइनैंशल एक्सपर्ट निवेशकों के पैसे को बाजार के हालत के हिसाब से इनवेस्ट करते हैं। पर कई बार फंड हाउसों के इन्वेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव और उनकी स्ट्रैटिजी बहुत अच्छी नहीं होती और यह इनवेस्टर को सूट नहीं करती। ऐसे में उनके लिए पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (पीएमएस) बेहद मददगार साबित हो सकती है।
क्या है पीएमएस

पीएमएस फंड मैनेजमेंट सर्विस है। इनमें काम करने वाले प्रफेशनल्स को इन्वेस्टमेंट की गहरी समझ होती है। इसी समझ के इस्तेमाल की बदौलत ये निवेश के बेहतर गुर बताते हैं। आज बैंक, स्टॉक ब्रोकिंग हाउस, रिसर्च हाउस, म्यूचुअल फंड हाउस और प्राइवेट कंपनियां आदि पीएमएस सर्विस मुहैया करते हैं। वे शेयर, म्यूचुअल फंड, बॉन्ड आदि में निवेश की तरकीब इन्वेस्टर्स को देते हैं।

पीएमएस का इस्तेमाल कैसे करें

सबसे पहले आपको पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस देने वाली कंपनियों को अप्रोच करना होगा। पोर्टफोलियो या फंड मैनेजर आपसे बातचीत के जरिए आपके रिस्क प्रोफाइल का जायजा लेगा। यानी वह यह पूछेगा कि आप किस हद तक रिस्क लेने की स्थिति में हैं। आपसे बातचीत के बाद मैनेजर आपके लिए इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो तैयार करेगा। यह पोर्टफोलियो आपकी जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाएगा। यानी इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो आपके स्टॉक सेलेक्शन और प्रेफरेंस के हिसाब से तैयार किया जाएगा। आप किस तरह के स्टॉक में निवेश करना चाहते हैं? या उस निवेश में आने वाले रिस्क को झेलने को आप तैयार हैं? निवेश के जरिए आपको किस तरह का रिटर्न मिलेगा? क्या ये सारी चीजें आपको सूट करती हैं? इन तमाम सवालों पर बातचीत के बाद आपका इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो तैयार किया जाएगा। म्यूचुअल फंड और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस में बुनियादी अंतर यह है कि म्यूचुअल फंड हाउस किसी खास फंड के लिए एक तरह की स्ट्रैटिजी तय करते हैं जबकि पोर्टफोलियो मैनेजमेंट में हर खास निवेशक की दिलचस्पी, सीमाओं और क्षमताओं को ध्यान में रखकर उसका इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो तैयार किया जाता है।

रिटेल इन्वेस्टर के लिए भी रास्ता

पहले कंपनियां सिर्फ बड़े निवेशकों और हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) को पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस देती थीं। पर अब कंपनियों ने अपनी स्ट्रैटिजी बदल ली है। उन्होंने अपना पोर्टफोलियो साइज कम कर दिया है। अब 5 लाख रुपये तक के निवेश के लिए भी पीएमएस उपलब्ध है।

कितनी तरह की पीएमएस

पीएमएस दो तरह की होती है। डिस्क्रिशनरी और नॉन-डिस्क्रिशनरी। डिस्क्रिशनरी प्लान के तहत आप खुद यह तय करते हैं कि आपको अपना पैसा कहां लगाना है और कहां नहीं। या फिर निवेश की गई राशि को हटाना है या नहीं। पर नॉन-डिस्क्रिशनरी प्लान के तहत पोर्टफोलियो मैनेजर को इस बात की छूट होती है कि वह आपका पैसा किस तरह से निवेश करे। यह तय करना आपके हाथों में होता है कि आप कौन सा प्लान चुनते हैं डिस्क्रिशनरी या नॉन-डिस्क्रिशनरी।

पीएमएस की प्रक्रिया

स्टेप 1: आपको सबसे पहले पीएमएस के लिए जरूरी कागजात भरकर देने होंगे। इनमें पीएमएस अग्रीमेंट फॉर्म, नो योर क्लाइंट फॉर्म आदि को भरकर देना पड़ता है।

स्टेप 2: आपको पीएमएस फर्म या कंपनी के पास एक पीएमएस अकाउंट खोलना होगा। आपको डीमैट अकाउंट और एक बैंक अकाउंट भी खोलना होगा। डीमैट और बैंक अकाउंट आपको उन्हीं बैंकों में खोलने होंगे, जिनके साथ आपके पीएमएस प्रोवाइर का करार है। हर पीएमएस प्रोवाइडर का करार अलग-अलग ब्रोकरेज फर्म्स और बैंकों के साथ होता है।

स्टेप 3: जब आपका सारा पेपर वर्क पूरा हो जाता है, तो आपको निवेश की राशि अपने पोर्टफोलियो मैनेजर के पास जमा करानी होगी। आपने जिस प्लान को चुना है, आपको उसी के हिसाब से राशि जमा करनी होगी। हर पीएमएस फर्म अलग-अलग तरह के निवेशकों के लिए अलग-अलग तरह के प्लान तैयार करती हैं। यदि आपके पास पहले से किसी कंपनी के शेयर हैं तो आप उसे भी अपने डिपॉजिटरी अकांउट के जरिये पीएमएस फर्म को ट्रांसफर कर सकते हैं।

स्टेप 4: आप अपने रिस्क प्रोफाइल और कैश फ्लो से संबंधित जरूरतों से फंड मैनेजर को रूबरू करा सकते हैं। आप अपने इन्वेस्टमेंट प्रेफरेंस भी पोर्टफोलियो मैनेजर को बता सकते हैं।

स्टेप 5: पीएमएस प्रोवाइडर आपके पोर्टफोलियो में इन्वेस्ट करता है और आपको पोर्टफोलियो की परफॉपमेंस की जानकारी लगातार देता रहता है।

स्टेप 6: आपको अपने पीएमएस अकाउंट से फंड की निकासी की छूट होती है। इसके लिए आपको पीएमएस फर्म को फंड की निकासी की वाजिब वजह बतानी होगी। फिर आप पीएमएस फर्म को नोटिस देकर फंड की निकासी कर सकते हैं।

फी स्ट्रक्चर

पीएमएस फर्म्स आपको दी जाने वाली सेवाओं के बदले आपसे पैसे लेती हैं। मोटे तौर पर हर पीएमएस फर्म का अपना फी स्ट्रक्चर होता है। फी स्ट्रक्चर दो तरह के होते हैं। ये हैं - फिक्स्ड और फिक्स्ड प्लस प्रॉफिट शेयरिंग। फिक्स्ड स्ट्रक्चर के तहत आपको सालाना अपनी पोर्टफोलियो साइज का 1 से 2।5 फीसदी के बीच पीएमएस फर्म को देना होगा। फिक्स्ड प्लस पोर्टफोलियो शेयरिंग स्ट्रक्चर के तहत आपको पीएमएस फर्म को सालाना अपनी पोर्टफोलियो साइज का 0।5 से 1।5 फीसदी के बीच देना होगा। इसके अलावा निवेश के जरिए होने वाले मुनाफे का बंटवारा निवेशक और पीएमएस फर्म मिलकर करते हैं।

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