Friday, 21 December 2007

बेहद आसान है शॉर्ट सेलिंग का फंडा समझना

नई दिल्ली : शॉर्ट सेलिंग से मतलब किसी कंपनी के शेयर को पहले बेचना और फिर खरीदना है। इसे एक उदाहरण के जरिये बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। फर्ज करें कि किसी कंपनी के शेयर की कीमत 500 रुपये है। किसी निवेशक को लगता है कि कंपनी के शेयर की कीमत गिरकर 450 रुपये तक आएगी। लिहाजा वह 500 रुपये पर कंपनी के शेयर को बेच देता है। जब शेयर की कीमत गिरकर 450 रुपये पर आ जाती है, तो वह उस शेयर को खरीद लेता है।

इस पूरे मामले में दिलचस्प यह है कि निवेशक ने पहले शेयर को बेचा और फिर उसे खरीदा। पर आपके दिमाग में यह सवाल उठ रहा होगा कि कोई भी व्यक्ति उस शेयर को कैसे बेच सकता है, जिसका मालिकाना हक उसके पास है ही नहीं। आपका सोचना सही है। पर सेबी ने इसके लिए इंतजाम कर रखा है। निवेशक द्वारा शेयर को खरीदे जाने से पहले बेचे जाने की हालत में उसे उतने पैसे जमा कराने पड़ते हैं, जितने पैसे में उसने शेयर को बेचा है। यह बेचना भी एक तरह का खरीदना ही है। यदि निवेशक ने 500 रुपये में शेयर को बेचा है, तो उसे अपने डीमैट अकाउंट के जरिये उस कंपनी को 500 रुपये देने होंगे, जिसका शेयर उसने खरीदा है। फिर जब शेयर की कीमत गिरकर 450 रुपये पर आ जाती है, तो निवेशक उसे खरीदने का ऑर्डर कर देता है। ऐसी हालत में कंपनी निवेशक के 450 रुपये काट लेती है और उसे 50 रुपये लौटा देती है। यानी निवेशक को 50 रुपये का मुनाफा होता है।

अब यह फर्ज करें कि निवेशक ने कंपनी का शेयर इस उम्मीद में 500 रुपये पर बेच दिया कि जब उसकी कीमत 450 रुपये पर आएगी तब वह उसे खरीद लेगा। पर शेयर की कीमत 50 रुपये गिरने के बजाय 50 रुपये बढ़कर 550 रुपये हो गई। ऐसी स्थिति में यदि निवेशक दाम और बढ़ने के डर से यदि 550 रुपये पर ही शेयर को खरीदता है, तो उसे कंपनी को अपने अकाउंट से 50 रुपये और देने होंगे। यानी निवेशक को 50 रुपये का नुकसान उठाना होगा।

अब तक रिटेल इनवेस्टरों को शेयर की शॉर्ट सेलिंग की इजाजत थी। इसके तहत वे इक्विटी और फ्यूचर दोनों में शेयरों की शॉर्ट सेलिंग कर सकते थे। पर इक्विटी में शॉर्ट सेलिंग करने पर उन्हें डे ट्रेडिंग के दौरान यानी एक दिन के कारोबार के दौरान ही सौदे का निपटारा करना जरूरी होता था। फ्यूचर की खरीदारी में सौदे का निपटारा करने के लिए 1 महीने की छूट दी जाती थी। यदि इस दौरान निवेशक सौदे का निपटारा नहीं करते, तो कंपनी महीने के आखिरी गुरुवार को खुद-ब-खुद सौदे का हिसाब-किताब कर देती थी। सेबी ने अब इंस्टिट्यूशनल इनवेस्टरों को भी शेयरों का यह रोचक कारोबार करने की इजाजत दे दी है।

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