Thursday, 6 December 2007

IIM यानी 'इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेल्स'

नई दिल्ली : हर इम्तिहान में कामयाबी की बुलंदियां छूने वाली लड़कियां देश के सबसे नामी-गिरामी पेशे और एजुकेशन में इतनी पीछे कैसे? यह सवाल आपके जेहन में भी तैर सकता है, अगर बताया जाए कि टॉप बिजनेस स्कूल 'इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम)' में दाखिला लेने वाले स्टूडेंट्स में सिर्फ 10 फीसदी लड़कियां होती हैं। यानी 10 लड़कों के मुकाबले सिर्फ एक लड़की।

मैनेजमेंट एजुकेशन ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट 'करियर लॉन्चर' द्वारा कराई गई एक स्टडी में यह बात सामने आई है। स्टडी में इसके पीछे दो कारणों का हवाला दिया गया है- एक तो एंट्रेंस के लिए अप्लाई करने वाली लड़कियों की तादाद ही बहुत कम होती है, दूसरा उनमें बिजनेस एप्टिट्यूड का स्तर काफी नीचे होता है। इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर अरिंदम लहरी के मुताबिक आईआईएम का गेटवे कहे जाने वाले कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) में बैठने वाली लड़कियों की तादाद के मामले में दिल्ली में स्थिति थोड़ी बेहतर है, जहां हर तीन स्टूडेंट्स में से एक लड़की होती है। लेकिन देश के अन्य भागों का रेश्यो काफी नीचे है।

लहरी कहते हैं कि ज्यादातर लड़कियां लिखित परीक्षा पास कर जाती हैं। लेकिन बिजनेस और मैनेजमेंट एप्टिट्यूड में कमी की वजह से वे ग्रुप डिस्कशन में सफल नहीं हो पातीं। गौरतलब है कि आईआईएम में एडमिशन कैट की लिखित परीक्षा के साथ-साथ ग्रुप डिस्कशन और पर्सनल इंटरव्यू में हासिल नंबरों के आधार पर मिलता है।

देश के 40 शहरों में 12, 500 स्टूडेंट्स पर कराई गई स्टडी में पाया गया कि सवालों का जवाब देते समय लड़कियां लड़कों के मुकाबले ज्यादा इमोशनल हो जाती हैं। करियर लॉन्चर के फैकल्टी मेंबर अर्जुन बधवा ने बताया कि लड़कियां इंग्लिश यूजेस सेक्शन में बेहतर परफॉर्म करती हैं, जबकि वे मैथ्स सेक्शन में सिर्फ अंकगणित के ज्यादा से ज्यादा सवालों का जवाब देने की कोशिश करती हैं। लेकिन लड़के मैथ के मामले में ज्यादा साउंड दिखते हैं। वे अलजेब्रा और जियॉमेट्री के पेपर में भी अच्छा करते हैं। गौरतलब है कि 5000 सीटों के लिए परीक्षार्थियों की संख्या पिछले साल के 1 लाख 90 हजार के मुकाबले इस साल 2 लाख 30 हजार पहुंच गई।

यह भी कम दिलचस्प नहीं कि कोर्स पूरा करने के बाद भी बहुत कम लड़कियां ही कॉरपोरेट का रुख करती हैं। स्टडी के मुताबिक ज्यादातर लड़कियां एचआर या एडवरटाइजिंग और पब्लिक रिलेशंस जैसी क्रिएटिव फील्ड को ही चुनती हैं। लहरी के मुताबिक लड़के और लड़कियों के बीच की यह खाई जल्द से जल्द पाटी जानी चाहिए। इसके लिए मैनेजमेंट एजुकेशन रिफॉर्म की सख्त जरूरत है।

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