मुंबई: भारत को हर साल तीन हजार मेगावाट परमाणु बिजली की अतिरिक्त जरूरत पड़ती है। इसलिए वह ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए विदेशों की यूरेनियम खानों में हिस्सेदारी लेने से नहीं हिचकेगा।
भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एस के जैन ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि चूंकि हर संयंत्र के लिए उसे उसके काम करने तक ईधन आपूर्ति जरूरी है इसलिए हम खनन कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने से नहीं हिचकेंगे।
जैन हाल ही में वर्ल्ड एसोसियेशन आफ न्यूक्लियर आपरेटर्स (डब्ल्यूएएनओ) के अध्यक्ष चुने गए हैं। उन्होंने कहा कि भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम तेजी से विकसित हो रहा है। ऐसे में हमें वैश्विक कंपनियों के साथ सहभागिता के तौर तरीके पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आखिरकार व्यवसाय और वित्तपोषण के माडल इकाई की ऊर्जा लागत पर निर्भर करेंगे जिसके लिए प्रतिस्पर्द्धी होना जरूरी है।
मुंबई की एक निजी माइनिंग एवं इंजीनियरिंग कंपनी ने अफ्रीका में एक यूरेनियम खान हासिल करने में दिलचस्पी दिखाई है। उसने अगस्त में ऐलान किया कि उसे अफ्रीका में नाइजर के आरलिट क्षेत्र में तीन हजार किलोमीटर पर यूरेनियम की खोज और उसके खनन के लिए परमिट मिल गया है। नाइजर परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) के अंतर्गत नहीं आता है।
जैन के अनुसार स्वदेशी कार्यक्रम के तहत 2020 तक 20 जीडब्ल्यू हासिल होगा। अगर शुरू की गई पहल ने आकार लिया और उस अवधि के दौरान कार्यक्रम में वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं ने भागेदारी की तो 40 जीडब्ल्यू तक का तेज विकास संभव है। उन्होंने बताया कि भारत के पास छह से आठ लाइट वाटर रिएक्टरों वाले नए परमाणु स्थलों को विकसित करने का एक प्रस्ताव है। कई उपयुक्त तटवर्ती इलाकों की पहचान की गई है। सरकार से अधिग्रहण की सिफारिश की गई है। उनकी पहचान सरकार की मंजूरी के बाद की जाएगी।
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