Thursday, 4 October 2007

निर्यात के बदले डॉलर की जगह यूरो लेगी सरकार?

नई दिल्ली : रुपये की मजबूती से एक्सपोर्ट को लग रहे झटके से परेशान उद्योग मंत्रालय नए विकल्प ढूंढ रहा है। वह अब यूरोपीय और अन्य देशों को निर्यात डॉलर की जगह यूरो करंसी से करने पर विचार कर रहा है। इसके लिए उद्योग मंत्री कमलनाथ जल्द ही एक्सपोर्टरों के साथ बैठक करेंगे। अगर बात बन जाती है तो इस संबंध में सभी औपचारिकताएं जल्द पूरी कर ली जाएंगी। कमलनाथ का कहना है कि कोई तो हल निकालना ही पड़ेगा। अगर यूरो से निर्यात करने में निर्यातकों को फायदा होता है तो उसे चलाने में क्या बुराई है। फिलहाल एक डॉलर की कीमत 40 रुपये से कम है और एक यूरो की कीमत लगभग 57 रुपये है।

उद्योग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार फिलहाल डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाना चाहती। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी डॉलर की खरीदारी से बच रहा है। उसे आशंका है कि ऐसा करने से फॉरेन इनवेस्टमेंट का फ्लो रुक जाएगा। इसके अलावा डॉलर की ज्यादा खरीदारी करने से उसका नकदी खजाना भी कम हो जाएगा। हालांकि उद्योग मंत्रालय एक्सपोर्टरों के लिए पैकेज बनाने में जुटा हुआ है, मगर वित्त मंत्रालय ज्यादा छूट देने के पक्ष में नहीं है। एक्सपोर्टर निर्यात से संबंधित सभी सेवाओं पर टैक्स की छूट चाहते हैं। इसके अलावा वे इंटरेस्ट रेट में भी कमी चाहते हैं, जिसे मानने के लिए वित्त मंत्रालय तैयार नहीं है। इन्हीं सब बातों से परेशान उद्योग मंत्रालय ने अब डॉलर की जगह यूरो चलाने पर विचार करना शुरू कर दिया है।

भारतीय विदेशी व्यापार संस्थान के पूर्व डायरेक्टर बी. बी. भट्टाचार्य का मानना है कि ऐसा करना भारत के लिए आसान नहीं होगा। बेशक यूरोपीय देश इसके लिए राजी हो जाएं, मगर अन्य देशों को मनाना मुश्किल होगा। विदेशी व्यापार को लेकर एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भारत का 50 से 60 प्रतिशत निर्यात केवल अमेरिका को ही होता है। अगर भारत अन्य देशों के साथ यूरो में निर्यात करने में कामयाब भी हो गया तो बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।

फियो के वाइस प्रेजिडेंट शक्ति वेलु का कहना है कि एक्सपोर्टर तो अपने घाटे से उबरना चाहते हैं। इसके लिए वे किसी भी उपाय के लिए तैयार हैं। चाहे निर्यात डॉलर से हो या यूरो से, उनके प्रॉफिट पर असर नहीं पड़ना चाहिए।

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