Monday 22 October, 2007

पी-नोट्स पर लगाम सराहनीय

भारतीय शेयर बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा पार्टिसिपेटरी नोट्स (पी-नोट्स) के जरिए निवेश करने की बढ़ती प्रवृति पर अंकुश लगाने के लिए सेबी द्वारा उठाए जा रहे कदमों की आहट से इन दिनों बाजार में भारी बिकवाली का दौर चल रहा है। अभी कोई यह कह पाने की स्थिति में नहीं है कि ऐसा कब तक चलेगा, क्योंकि पिछले दो-तीन वर्षों में एफआईआई ने पी-नोट्स के जरिए बड़ी धनराशि निवेश की है और यदि सेबी अपनी योजना को अमल में लाती है तो पी-नोट्स के जरिए आने वाले धन का प्रवाह तो बाधित होगा ही, साथ ही जारी हो चुके पी-नोट्स के धन की मात्रा सेबी द्वारा निर्धारित सीमा तक लाने के लिए एफआईआई को अपने सौदे काटने पड़ेंगे।

हालाँकि सेबी ने नए नियमों को अभी अंतिम रूप नहीं दिया है, किंतु वित्त मंत्री ने साफ संकेत दे दिए हैं कि इस मामले में विदेशी निवेशकों द्वारा दबाव बनाने की कोई भी रणनीति कारगर नहीं होगी और सिर्फ इतनी छूट दी है कि पी-नोट्स के जरिए की गई अतिरिक्त खरीदी या सौदा काटने की अवधि 18 महीने से ज्यादा भी बढ़ाई जा सकती है।

दरअसल पी-नोट्स के जरिए खरीदी करने वाले निवेशकों के कारण समस्याएँ ही ज्यादा होती हैं। सबसे पहले तो ये निवेशक अपनी अधिकांश जानकारियों को गुप्त रखने में सफल हो जाते हैं इसलिए सरकार या सेबी को यह पता ही नहीं चलता है कि धन लगाने वाले किस तरह के निवेशक हैं तथा उनकी पृष्ठभूमि क्या है। शायद इसीलिए शेयर बाजार से जीवन-यापन करने वाले निवेशकों एवं ब्रोकर्स को तथा अप्रत्यक्ष रूप से वित्त मंत्रालय एवं सेबी को यह लाँछन सहन करना पड़ता है कि शेयर बाजार में आतंकवादी संगठनों का धन लगा है। हालाँकि इस बात में कोई दम नहीं है, क्योंकि धन कमाना सृजनात्मक है, जबकि दूसरों के जान-माल को नष्ट करना विध्वंस है और विध्वंस करने वालों की प्रवृत्ति सृजन करने में लग जाए तो फिर वे आतंकवादी क्यों रहेंगे?

बहरहाल दूसरी समस्या यह है कि पी-नोट्स के जरिए आ रही धनराशि दरअसल हॉट मनी है। अर्थात जितनी तेजी से यह राशि किसी देश या बाजार में लगती है, उतनी ही रफ्तार से बाहर भी निकलती है। अभी कुछ दिनों पहले तक विदेशी निवेशक 'बाय्‌ इंडिया' की नीति पर चल रहे थे और वित्त मंत्री एवं सेबी की तमाम चिंताओं एवं चेतावनियों की अनदेखी करते हुए असामान्य तरीके से निफ्टी एवं सेंसेक्स को नित नई ऊँचाइयों पर ले जा रहे थे।

यदि कल से ये विदेशी निवेशक 'शार्ट इंडिया- बाय ब्राजील' का नारा लगाते हुए भारत से धनराशि निकाल कर ब्राजील उड़ लिए तो यहाँ कितनी भारी गिरावट आएगी, इसकी कल्पना-मात्र से जानकारों के होश उड़ सकते हैं। इसीलिए इस देश में ऐसे विदेशी निवेशकों की जरूरत ज्यादा है जो लंबी अवधि के निवेशक हों। यानी शेयर खरीदने-बेचने में धीरज रखें तथा सेबी से रजिस्टर्ड होने में लगने वाले समय को भी धैर्यपूर्वक सहन करें।

तीसरी एवं सबसे महत्वपूर्ण समस्या यह है कि विदेशी निवेशकों द्वारा देश में डॉलर की बाढ़ ला देने से रुपया लगातार मजबूत होता जा रहा है। रुपए की इस मजबूती से सॉफ्टवेयर, टेक्सटाइल एवं बीपीओ समेत तमाम एक्सपोर्ट ओरिएंटेड कंपनियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पी-नोट्स पर अंकुश लगाने से थोड़े समय के लिए रुपए की मजबूती में बाधा उत्पन्न होगी तथा निर्यातक कंपनियों को संभलने का मौका मिलेगा।

किसी भी बड़े बदलाव का विरोध करना सहज मानवीय प्रवृत्ति है। निवेशकों को याद होगा कि वर्ष 1992 में तत्कालीन वित्त मंत्री श्री मनमोहनसिंह ने शेयर ब्रोकर्स की मनमानियों एवं अनियमितताओं से निवेशकों को निजात दिलाने के लिए नियामक संस्था सेबी का गठन किया था। उस समय देश भर के शेयर ब्रोकर्स ने विरोधस्वरूप कई दिनों तक हड़ताल की थी। वह हड़ताल गलत थी और सेबी का गठन सही था यह बात समय ने साबित कर दी है। इसी प्रकार आने वाला समय यह भी साबित करेगा कि पी-नोट्स के मामले में सेबी ने देश एवं निवेशक हितैषी कदम उठाया है।

रही बात बाजार की तो यह जैसे बढ़ा था, वैसे ही गिर भी रहा है। छः महीने या सालभर में आने वाली तेजी छः हफ्तों में आ जाए तो ऐसा ही होता है। अभी कुछ समय अस्थिरता का दौर चलने के बाद वेल्यूएशन आकर्षक स्तर पर आ जाएगी। फंडामेंटल तो वैसे ही मजबूत बने हुए हैं। मुद्रास्फीति 5 वर्ष के निम्नतम स्तर पर है, टैक्स कलेक्शन ज्यादा हो रहा है, औद्योगिक उत्पादन के आँकड़े अच्छे हैं, जीडीपी की वृद्धि दर अगले कई वर्षों तक उत्साहवर्द्धक बने रहने का अनुमान है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं। यहाँ प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री धुरंधर अर्थशास्त्री हैं तथा रिजर्व बैंक एवं सेबी जैसी सजग नियामक संस्थाएँ हैं। वास्तविक विदेशी निवेशकों को इतना सब कुछ एक जगह मिलेगा तो वे आज नहीं तो कल फिर एक स्वर में बोलेंगे 'बाय्‌ इंडिया।'

जानिए पी-नोट्स की दुनिया
* भारत में शेयर खरीदने या डेरिवेटिव्ज कामकाज करने के इच्छुुक, किंतु सेबी से रजिस्टर्ड होने में अनिच्छुक विदेशी निवेशक सेबी से रजिस्टर्ड एफआईआई से खरीदी के लिए संपर्क करते हैं।
* एफआईआई सब-अकाउंट बनाकर इनके लिए खरीदी करती है तथा इन निवेशकों को पी-नोट्स देती है।
* ऐसे सब-अकाउंट सेबी में रजिस्टर्ड तो होते हैं, किंतु सेबी को इन निवेशकों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती है।
* सेबी से रजिस्टर्ड एफआईआई की संख्या लगभग 1100 है।
* वित्त मंत्री के अनुसार मात्र 35-40 एफआईआई ही सब-अकाउंट खोलती है।
* 28 सितंबर 2007 तक 3388 सब-अकाउंट्स सेबी से रजिस्टर्ड हो चुके हैं।

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