मुंबई: मंगलवार को अपनी मानेटरी पॉलिसी पर पुनर्विचार से पहले भारतीय रिजर्व बैंक के सामने ब्याज दर में दुविधापूर्ण स्थिति है। हाल फिलहाल मुद्रास्फीति के अपने पांच साल के सबसे कम स्तर पर पहुंच गई है,जबकि बैंकों में अतिरिक्त लिक्विडिटी की समस्या व्याप्त है।
आरबीआई के गवर्नर व्हाईव्ही रेड्डी अगर ब्याज दर को बढ़ाने का निर्णय करते हैं तो इससे देश की विकास दर प्रभावित हो सकती है, जबकि लगातार आ रहे विदेशी निवेश से बैंकों के सामने तरलता की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।
कुछ बैंकें और अर्थशास्त्री चाहते हैं कि इस शीर्ष बैंक को शार्ट टर्म के लोन में कटौती करना चाहिए, जबकि अन्य आगाह करते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल की बढ़ती कीमतों के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने की संभावना है। ऐसे में यह कदम उचित नहीं होगा।
कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं कि रिजर्व बैंक को रेपो और रिजर्व रेपो रेट के बीच अंतर खत्म करना चाहिए तो अन्य एकल स्थाई ब्याज दर प्रणाली के पक्षधर है। हालांकि इससे सीआरआर बढ़ सकता है।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री सुबीर गोकम ने कहा कि हाल फिलहाल देश के हालात मानेटरी पॉलिसी में बदलाव की ओर संकेत नहीं करते। उन्हें इसमें कुछ खास परिवर्तन की उम्मीद नहीं है। सरकार को एक साल पहले घोषित नीतियों को ही आगे बढ़ाना होगा।
यस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री शुभांदो राव ने कहा है कि सीआरआर बढ़ाया जा सकता है। हालांकि अधिक संभावना इस बात की है कि है कि इस बार आरबीआई कोई विशेष बदलाव ही न करें।
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