नई दिल्ली : इन्फमेर्शन टेक्नॉलजी (आईटी) और बिजनेस प्रॉसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) के मामले में भारत का लोहा दुनिया मानती है। लिहाजा इसे आईटी और बीपीओ का ग्लोबल बैकऑफिस कहा जाता है। चीन की ऐसी ही पहचान मैन्युफैक्चरिंग के मामले में है। दुनिया की ज्यादातर जानीमानी कंपनियां अपनी मैन्युफैक्चरिंग की आउटसोर्सिंग चीन से कराती है। यानी ये कंपनियां चीन से अपने प्रॉडक्ट्स बनवाकर मंगाती हैं। कहा जाता है कि चीन दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब है। पर एक नई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि भारत 3 से 5 साल के भीतर मैन्युफैक्चरिंग आउटसोर्सिंग के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा।
ग्लोबल कंसल्टिंग, टेक्नॉलजी और आउटसोर्सिंग कंपनी कैपजेमिनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आने वाले दिनों में कई कंपनियां भारत में मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियां शुरू करने का प्लान बना रही हैं। भारत में मैन्युफैक्चरिंग आउटसोर्सिंग का काम इतना बढ़ेगा कि आईटी और बीपीओ सेक्टर्स में भारत की पहचान पीछे छूट जाएगी।
इस वक्त मैन्युफैक्चरिंग आउटसोर्सिंग सेक्टर में भारत उतनी तेजी विकास नहीं कर रहा। विदेशी कंपनियों ने अब तक भारत से मैन्युफैक्चरिंग आउटसोर्सिंग कराने में खास दिलचस्पी नहीं ली है। लेकिन सर्वे के आधार पर तैयार की गई कैपजेमिनी की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन को पीछे छोड़ भारत मैन्युफैक्चरिंग आउटसोर्सिंग का टॉप डेस्टिनेशन बन जाएगा। इसकी वजह यह है कि चीन के मुकाबले भारत में लागत कम है।
कैपजेमिनी ने कहा है कि भारत और चीन जैसी उभर रही अर्थव्यवस्थाओं की आउटसोर्सिंग गतिविधियों के मामले में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है। भारत अब आईटी और बीपीओ सेक्टर से अलग दूसरी गतिविधियों पर भी ध्यान दे रहा है। इसमें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी शामिल है, जिसमें अभी चीन की मनॉपली है।
रिपोर्ट में हालांकि कहा गया है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में महारत हासिल करने के लिए भारत को अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करना होगा। भारत सरकार विदेशी मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों को आकर्षित करने की इच्छुक है। पर इसके लिए भी अधिक निवेश की जरूरत है।
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