Friday, 26 October 2007

बच्चों की स्टडी के लिए फंड प्लानिंग : जस्ट डू इट

भारत में बदलती अर्थव्यवस्था के इस दौर में अब बच्चों को पढ़ाना-लिखाना बच्चों का खेल नहीं रहा। अभी से लगभग दो दशक पहले तक मध्यवर्गीय परिवार में बच्चों की आम पढ़ाई-लिखाई के लिए अलग से फंड की जरूरत नहीं पड़ती थी। अधिकतर स्कूल और कॉलेज सरकारी थे। प्रोफेशनल कोर्स जैसे मेडिकल इंजीनियरिंग के संस्थान भी सरकारी थे, जहां फीस का स्ट्रक्चर बिल्कुल दूसरा था। वह इतना अधिक भी नहीं था कि आप बच्चे के जन्म के साथ ही उसके लिए बचत करें अथवा अपनी जमीन जायदाद गिरवी रखें या कोई बड़ा लोन लें। लेकिन अब समय बदल गया है। ऐसे में बच्चे की सटीक शिक्षा के लिए एजुकेशन के खर्च की सही प्लानिंग की बहुत जरूरत है।

एजुकेशन पर आने वाले खर्च के एक आकलन में बताया गया है कि सामान्य प्ले स्कूल से लेकर पब्लिक स्कूल होते हुए ग्रैजुएशन तक में आज के हिसाब से औसतन 10 से 20 लाख रुपये तक का खर्च आता है। अगर बच्चा एमबीए, मेडिकल, हायर कंप्यूटर, पायलट ट्रेनिंग और बायोटेक जैसे पेशेवर कोर्स करता है तो यह खर्च काफी ऊपर जाएगा। पढ़ाई के लिए अगर विदेश जाना पड़े तो खर्च और भी बेशुमार होगा।

क्या कहते हैं प्लानर

फाइनेंशल प्लैनर कहते हैं कि बेटा हो या बेटी, अपने फाइनेंशल प्लानिंग में फर्क न करें।

कैसे जोड़ें रकम

सबसे पहला कदम है यह देखना कि बच्चे की वर्तमान उम्र क्या है और उसे किस तरह के कोर्स के लिए किस उम्र में कितनी रकम चाहिए। जितनी रकम की जरूरत आएगी उसमें महंगाई की वृद्धि दर को भी जोड़ लें। फिर बैकवर्ड कैलकुलेशन से मासिक या वार्षिक रकम निकाल लें। उसके बाद अपनी क्षमता के हिसाब से रकम जमा करना शुरू कर दें। शुरू में मासिक रकम कम हो सकती है बाद में जब आपकी आय बढ़ जाए तो रकम बढ़ा दें।

कहां करें जमा

इस बारे में ज्यादातर प्लानर कहते हैं कि इसके लिए सबसे बढि़या विकल्प है म्यूचुअल फंड। लोगों को डायवर्सिफायड फंड में सिस्टेमैटिक ढंग से निवेश करना चाहिए। निवेश एक ही फंड में नहीं कर 5 अलग-अलग फंडों में निवेश करना चाहिए। अगर आपको 10 हजार रुपये महीना लगाना है तो पांच फंडों में 2-2 हजार रुपये लगाएं।

म्यूचुअल फंड के बाद नंबर आता है बीमा योजनाओं का। इसके लिए अधिकतर बीमा कंपनियां अपने प्रॉडक्ट के साथ बाजार में हैं। इन योजनाओं का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें कर्ता के नहीं रहने पर बीमा कंपनियां मासिक प्रीमियम देती हैं और बच्चे का करियर प्रभावित नहीं होता। हालांकि इस तरह की योजनाओं में रिटर्न का प्रतिशत आम निवेश के मुकाबले कम बताया जाता है।

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