नई दिल्ली : वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री कमलनाथ में नीतिगत मुद्दों पर गंभीर मतभेद पैदा हो गए हैं। कमलनाथ अब अपनी बात प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के सामने रखने जा रहे हैं। कमलनाथ चाहते हैं कि रुपये की बढ़ती कीमत के मद्देनजर ब्याज दरें घटाई जाएं क्योंकि इससे निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ेगा। चिदंबरम इसके लिए तैयार नहीं हैं। वित्त मंत्रालय महंगाई की दर बढ़ने की संभावना पैदा नहीं करना चाहता। उसका मानना है कि ब्याज दर घटाने से बाजार में रुपये का फ्लो बढ़ जाएगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। आरबीआई पहले ही कह चुका है कि वह 3 प्रतिशत की महंगाई दर चाहता है। फिलहाल महंगाई की दर 3.23 प्रतिशत है।
दूसरा मुद्दा है रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश। चिदंबरम इस पर फौरन अमल चाहते हैं। कमलनाथ इस बारे में फूंक-फूंककर कदम रखना चाहते हैं। चिदंबरम का मानना है कि ज्यादा से ज्यादा एफडीआई से आर्थिक विकास की दर बढ़ेगी और योजनाओं पर अमल के लिए पर्याप्त धन रहेगा। कमलनाथ का तर्क है कि पहले रिटेल के छोटे कारोबारियों के हितों की रक्षा का इंतजाम हो।
तीसरा मुद्दा है निर्यातकों के लिए राहत पैकेज। कमलनाथ ने इस बारे में पिछले दिनों वित्त मंत्रालय के पास प्रस्ताव भेजा था। वित्त मंत्रालय ने दो टूक बता दिया कि बजट से पहले कुछ नहीं हो सकता। वाणिज्य मंत्रालय का कहना है कि बजट आने में अभी पांच महीने हैं। तब तक इंतजार करने से निर्यातकों और निर्यात को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
वॉलमार्ट, टैस्को और कैरी फोर विदेशी कंपनियां रिटेल सेक्टर में आने के लिए बेताब है। वित्त मंत्रालय राजी है, मगर वाणिज्य मंत्रालय के फिलहाल राजी न होने से कमलनाथ को सीधे सवालों का सामना करना पड़ रहा है।
कमलनाथ चाहते हैं कि अगर सरकार किसी वजह से रुपये की मजबूती नहीं रोक पा रही है तो उसे कम से कम एक्सपोर्टरों को दिए जानेवाले लोन पर इंटरेस्ट रेट को कम करना चाहिए। वर्तमान में एक्सपोर्टरों को 9 से 9.5 प्रतिशत पर लोन दिया जाता है। कमलनाथ इसमें 1 से 2 फीसदी की कमी चाहते हैं। कमलनाथ का कहना है कि परिस्थितियों को देखते हुए केंद्रीय बैंक को कुछ कदम तो उठाने ही चाहिए। कुछ तो रियायत एक्सपोर्टरों को मिलनी ही चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उन्हें प्रतिस्पर्धा झेलने में कोई दिक्कत न आए। इन प्रस्तावों व उपायों पर विचार करने को लेकर वित्त मंत्रालय ज्यादा उत्साह नहीं दिखा रहा है। वित्त मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी का कहना है कि चालू वित्तवर्ष की अंतिम तिमाही काफी महत्वपूर्ण होती है। कोई भी फैसला लेने से पहले बजटीय प्रावधानों को देखना जरूरी है।
इधर फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (फियो) ने सरकार से साफ कह दिया है कि अगर उसे रियायत पैकेज नहीं मिला तो निर्यात की ग्रोथ रेट गिरेगी, साथ ही निर्यातक का भी बुरा हाल हो जाएगा। फियो सोमवार को इस मसले पर एक बैठक कर रहा है, बाद में सरकार को ज्ञापन दिया जाएगा। फियो के वाइस चेयरमैन ए. शक्तिवेलू कहते हैं, गिरते निर्यात के कारण कई निर्यातकों ने प्रॉडक्शन यूनिटें बंद कर दीं हैं।
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